Jan 26, 2017

सर्वलोकेषु रम्यं--'सारे जहाँ से अच्छा' गीत संस्कृत में ..

गणतंत्र दिवस की सभी भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ!

'सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मदीयं मदीयं '
संस्कृत अनुवाद द्वारा- श्री रंजन बेज़बरुआ जी
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सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मादीयं, मदीयम् ।

’बुल्बुलाः’ हि नः सर्वे,

देशः सूनस्तबकम् , मदीयम् ॥

सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मादीयं, मदीयम् ।
१.पर्वतो हि सर्वोच्चः
विहायसः शिरश्चुम्बी ।
स्वप्रहरिणः शुवीराः
सुसैनिका अस्मदीयाः, मदीयाः ॥

सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मादीयं, मदीयम् ।

2.क्रोडे च क्रीडारताः
नद्यः सहस्रधाराः

सपुष्टप्राणो:  सनीरैः
स्वर्ग्यमिदं मुदितं मुदितम् ॥

सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मादीयं, मदीयम् ।

3.धर्मास्य में  न शिक्षा
वैरिता न विधेया

’हिन्दी’ हि वयं हिन्दी’ हि वयं ।
’हिन्दी’ हि वयं स्वभूमिः,
भारतमस्मदीयं मदीयम् ॥

सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मादीयं, मदीयम् ।
बुल्बुलाः हि नः सर्वे,
देशः सूनस्तबकम् , मदीयम् ॥

सर्वलोकेषु रम्यं हि भारतमस्मादीयं, मदीयम्
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सारे जहाँ से...इस गीत को संस्कृत में सुनिये -
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सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा ।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलसितां हमारा ।।

गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में ।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा ।। सारे...

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का ।
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा ।। सारे...

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ ।
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा ।।सारे....

ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको ।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा ।। सारे...

मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा ।। सारे...

यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा ।।सारे...

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी ।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा ।। सारे...

'इक़बाल' कोई मरहूम, अपना नहीं जहाँ में ।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा ।। सारे...

इस गीत को प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल ने १९०५ में लिखा था और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाया था। इक़बाल की यह रचना बंग-ए-दारा में शामिल है। उस समय इक़बाल लाहौर के सरकारी कालेज में व्याख्याता थे। उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया। इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई। यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में लिखी गई है और अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है। १९५० के दशक में सितार-वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुर-बद्ध किया।

[विवरण विकिपीडिया से साभार ]

1 comment:

Entertainment fun and much more said...

Thank you so much for the Sanskrit lyrics. It will help me with a school project of Sanskrit subject.