काली घटा छाये मोरा जिया तरसाए
फिल्म-सुजाता [१९५९] ,गीतकार- मजरूह सुल्तानपुरी संगीत-सचिन देव बर्मन
मूल गायिका -आशा भोसले
प्रस्तुत गीत में स्वर-अल्पना
काली घटा छाये मोरा जिया तरसाए
ऐसे मे कही कोई मिल जाए रे
बोलो किसी का क्या जाए रे, क्या जाए रे, क्या जाए
काली घटा छाये
हूँ मै कितनी अकेली वो ये जानके..
मेरे बेरंग जीवन को पेहेचानके,
मेरे हाथो को थामे हँसे और हँसाए
मेरा दुःख भूलाये किसी का क्या जाए
काली घटा छाये...
यूँ ही बगिया मे डोलू मैं खोयी हुई
न तो जागी हुई सी न सोयी हुई
मेरे बालों मे कोई धीरे से आके,
कलि टाँक जाए किसी का क्या जाए
काली घटा छाये..
उसके राहे तकूँ टल मलाती फिरूं
हर आहटपे नैना बिछाती फिरू
वो जो आएगा कल न क्यो आज आये,
मेरा मन बसाए किसी का क्या जाए
काली घटा छाये...
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Cover sung by Alpana
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