Mar 18, 2010
४४-वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया
वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया, अब उसका हाल बताएँ क्या,
कोई मेहर नहीं, कोई कहर नहीं, फिर सच्चा शेर सुनाएँ क्या।
एक हिज़्र जो हमको ला-हक है, ता-देर उसे दुहराएँ क्या,
वो जहर जो दिल में उतार लिया, फिर उसके नाज़ उठाएँ क्या।
एक आग ग़म-ए-तन्हाई की, जो सारे बदन में फैल गई,
जब जिस्म हीं सारा जलता हो, फिर दामने-दिल को बचाएँ क्या।
हम नगमा-सरा कुछ गज़लों कें, हम सूरत-गर कुछ ख्वाबों के,
ये जज्बा-ए-शौक सुनाएँ क्या, कोई ख्वाब न हों तो बताएँ क्या।
शायर 'अतर नफीस' की लिखी है.
********कोई साज़ नहीं है,मैं ने सिर्फ इसे पढ़ा है********
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14 comments:
उम्दा गजल और गुनगुनाना लाजवाब
आपकी आवाज़ बेहद मधुर और सुरीली है ! मेरी सुबह का इतना मीठा आग़ाज़ कराने का बहुत बहुत शुक्रिया ! आज पहली बार आपको सुन रही हूँ और आपकी मधुर आवाज़ की मुरीद हो गयी हूँ !
बहुत ही लाजवाब अंदाज में पढा गया है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
पूरी गजल बहुत खूबसूरत है..
ek bahoot badhiya ghazal padhne ko do,
dhanyawaad...
kunwar ji
Subah subah ek behtreen gazal. Din gujar jaayeyga.
Or ka intzaar hai.
nazm k saath aawaaz bhi bemisaal!!
शुक्रिया इसे बांटने के लिए ...मैंने पहली बार पढ़ा है ...
नज़्म भी सुन्दर और गाया भी खूब......."
amitraghat.blogspot.com
बेहतरीन नज़्म और उम्दा गायन..वाह!
पहला शेर पढ़ते ही वाह निकली। बहुत ही अच्छी गजल। गजलकार को बधाई। जितनी श्रेष्ठ गजल उतनी ही अच्छी गायकी। बधाई।
itni khoobsurat aawaz me ye khoobsurat gazal waakai kai chaand najar aaye is blog pe .ek sukoon hai ek mithas hai .phir aana hai fursat hokar sunne .once more....
ये नया अंदाज़ बढियां है. यूं ही नया करते रहें, प्रयोग ही जीवन शक्ति है.
ग़ज़ल तो लाजवाब है ही ... पर अपनी आवाज़ देकर आपने और मिठास घोल दिया है !
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