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फिल्म---काजल
मूल गायिका---आशा भोंसले
संगीत---रवि
गीत----साहिर लुधयानवी
तोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए
1-मन ही देवता मन ही इश्वर
मन से बड़ा न कोई
मन उजियारा ,जब जब फैले
जग उजियारा होए
इस उजाले दर्पण पर प्राणी, धूल ना जमने पाए
तोरा मन दर्पण कहलाये .......
2-सुख की कलियाँ, दुःख के कांटे
मन सब का आधार
मन से कोई बात छुपे न
मन के नैन हजार
जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाये
तोरा मन दर्पण कहलाये ......
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10 comments:
अद्वितीय गीत और उसका भाव तो क्या कहने
सुन्दर गीत..अच्छा लगा आपकी आवाज में सुनना!!
बेहद खूबसूरत गीत । सुबह-सुबह ही मन-दर्पण दिख गया । आभार ।
काश सभी इस दर्पण को देखकर भला-बुरा समझते रहते...
जय हिंद...
सुंदर गीत, सुमधुर आवाज और सबसे बडी बात यह कि आप इस ब्लाग के लिये बहुत ही उम्दा गीतों का चयन कर रही हैं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत अच्छा गीत है। शुक्रिया।
बहुत प्यारा सुन्दर गीत। शब्दों के मन की मिठास के क्या कहने साहिर जी ने जो लिखा है। पर अफसोस अभी सुन नही पाऊँगा। बाद में सुनेगे जी।
आप जिस गीत को गातीं हैं उसी का दीवाना बना देती हैं...आप की सुर साधना काबिले तारीफ़ है...गाते रहिये...
नीरज
बहुत उम्दा प्रयास आप के ब्लाग पर कुछ खालिस भारतीय संगीत तो सुनने को मिला
sundar bahut sundar bhajan mujhe bahut priya hai is blog ki tarah .jeevan darshan hai isme ,umda
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