कविता पाठ -
स्वर : अल्पना वर्मा
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कदम्ब का पेड़ [कविता] -:
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-सुभद्रा कुमारी चौहान
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।
ले देतीं यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बाँसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता।।
सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।
मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती।।
तुमको आता देख बाँसुरी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बाँसुरी बजाता।।
गुस्सा होकर मुझे डांटती , कहती "नीचे आजा"।
पर जब मैं ना उतरता,हँसकर कहती "मुन्ना राजा"।।
"नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूँगी।
नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूँगी "।।
मैं हँसकर सबसे ऊपर की टहनी पर चढ़ जाता।
एक बार माँ कह पत्तों में वहीँ कहीं छुप जाता ।।
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।
तुम आँचल फैला कर अम्मा वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
माँ कदंब का पेड़ अगर यह होता यमुना तीरे।।
--सुभद्रा कुमारी चौहान
स्वर : अल्पना वर्मा
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कदम्ब का पेड़ [कविता] -:
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-सुभद्रा कुमारी चौहान
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।
ले देतीं यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बाँसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता।।
सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।
मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती।।
तुमको आता देख बाँसुरी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बाँसुरी बजाता।।
गुस्सा होकर मुझे डांटती , कहती "नीचे आजा"।
पर जब मैं ना उतरता,हँसकर कहती "मुन्ना राजा"।।
"नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूँगी।
नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूँगी "।।
मैं हँसकर सबसे ऊपर की टहनी पर चढ़ जाता।
एक बार माँ कह पत्तों में वहीँ कहीं छुप जाता ।।
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।
तुम आँचल फैला कर अम्मा वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
माँ कदंब का पेड़ अगर यह होता यमुना तीरे।।
--सुभद्रा कुमारी चौहान
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