कवयित्री- महादेवी वर्मा जी
कविता पाठ : अल्पना वर्मा
तुम सो जाओ मैं गाऊँ !
मुझको सोते युग बीते,
तुमको यों लोरी गाते;
अब आओ मैं पलकों में
स्वप्नों से सेज bichhaun !
प्रिय ! तेरे नभ-मंदिर के
मणि-दीपक बुझ-बुझ जाते;
जिनका कण कण विद्युत है
मैं ऐसे प्राण जलाऊँ !
अपनी असीमता देखो,
लघु दर्पण में पल भर तुम;
मैं क्यों न यहाँ क्षण क्षण को
धो धो कर मुकुर बनाऊँ ?
---------- शेष कविता :-
क्यों जीवन के शूलों में
प्रतिक्षण आते जाते हो ?
ठहरो सुकुमार ! गला कर
मोती पथ में फैलाऊँ !
पथ की रज में है अंकित
तेरे पदचिह्न अपरिचित;
मैं क्यों न इसे अंजन कर
आँखों में आज बसाऊँ !
जब सौरभ फैलाता उर
तब स्मृति जलती है तेरी;
लोचन कर पानी पानी
मैं क्यों न उसे सिंचवाऊँ ।
इन भूलों में मिल जाती,
कलियां तेरी माला की;
मैं क्यों न इन्ही काँटों का
संचय जग को दे जाऊँ ?
हंसने में छुप जाते तुम,
रोने में वह सुधि आती;
मैं क्यों न जगा अणु अणु को
हंसना रोना सिखलाऊँ ! ======================