
ब्लॉग पर छाई एक लम्बी खामोशी को तोड़ते हुए एक पुराना गीत --
दो पल रुका यादों का कारवाँ
फिल्म--:वीर-ज़ारा
संगीत-मदन मोहन
गीत-जावेद अख़्तर
'दो पल रुका ख़्वाबों का कारवाँ ,और फिर चल दिये तुम कहाँ हम कहाँ
दो पल की की थी ये दिलों की दास्ताँ ,और फिर चल दिये तुम कहाँ हम कहाँ''
१-तुम थे के थी कोई उजली किरण,तुम थे या कोई कली मुस्काई थी
तुम थे या था सपनों का था सावन,तुम थे के खुशियों की घटा छायी थी
तुम थे के था कोई फूल खिला ,तुम थे या मिला था मुझे नया जहां
दो पल रुका ख़्वाबों का कारवाँ.....................
२-तुम थे के खुशबू हवाओं में थी,तुम थे या रंग सारी दिशाओं में थे
तुम थे या रौशनी राहों में थी,तुम थे या गीत गूंजे फिजाओं में थे
तुम थे मिले या मिली थी मंजिलें ,तुम थे के था जादू भरा कोई समां
दो पल रुका, ख़्वाबों का कारवाँ
और फिर चल दिए, तुम कहाँ, हम कहाँ
यह दोगाना अपने पी सी पर सितंबर २००८ में रेकॉर्ड किया था जब मैं ट्रेक मिक्सिंग सीख ही रही थी.
कारोआक्े में शुरू में आलाप लता जी की आवाज़ में मूल ट्रेक से ही हैं]
[प्रस्तुत आवाज़ें-राजा पाहवा और अल्पना ]
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