फिल्म- साहिब बीबी और गुलाम - [1962]
गीत- शक़ील बदायूँनी, संगीत-- हेमंत कुमार , मूल गायिका-गीता दत्त
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गवाँ बैठी
हर आहट पे समझी वो आय गयो रे
झट घूँघट में मुखड़ा छुपा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे …
कि मैं तन मन की सुध बुध गवाँ बैठी
हर आहट पे समझी वो आय गयो रे
झट घूँघट में मुखड़ा छुपा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे …
मोरे अंगना में जब पुरवय्या चली
मोरे द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
ओ दैया! द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
मैने जाना कि आ गये सांवरिया मोरे
झट फूलन की सेजिया पे जा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे …
मोरे द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
ओ दैया! द्वारे की खुल गई किवाड़ियां
मैने जाना कि आ गये सांवरिया मोरे
झट फूलन की सेजिया पे जा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे …
मैने सिंदूर से माँग अपनी भरी
रूप सैयाँ के कारण सजाया
मैने सैयाँ के कारण सजाया
इस डर से किसी की नज़र न लगे
झट नैनन में कजरा लगा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे …
रूप सैयाँ के कारण सजाया
मैने सैयाँ के कारण सजाया
इस डर से किसी की नज़र न लगे
झट नैनन में कजरा लगा बैठी
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे …
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3 comments:
गीता दत्त जी के गाये गीत को गाना अपने आप में गौरव या कहूँ सम्मान की बात है ,
उसे ईमानदारी से निभाना और भी बड़ी बात नहीं परम सौभाग्य के साथ ख़ुशी की बात है.
सुनकर आनंदित हुआ .बधाई आप गति रहें उम्र भर हम सुनते रहेंगे ......
आप गाती रहें हम उम्र भर सुनते रहेंगे .
Thanks Ramakant ji.
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