फिल्म : पूर्णिमा (1965)
गीत : गुलज़ार
संगीत : ??? शंकर -जयकिशन /सलील चौधरी ?/लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल?
(*अंतर्जाल पर इस गीत के संगीतकार का नाम अलग -अलग लिखा हुआ है)
मूल गायक - लता मंगेशकर और मुकेश
गीत के बोल :
हमसफर मेरे हमसफर,
पंख तुम परवाज़ हम
ज़िंदगी का साज़ हो तुम, साज़ की आवाज़ हम
हमसफ़र मेरे हमसफ़र, पंख तुम परवाज़ हम
ज़िंदगी का गीत हो तुम, गीत का अंदाज़ हम
१.आँख ने शर्मा के कह दी, दिल के शरमाने की बात
एक दीवाने ने सुन ली दूजे दीवाने की बात
प्यार की तुम इन्तेहा हो, प्यार की आगाज़ हम
२.ज़िक्र हो अब आसमान का या ज़मीन की बात हो
ख़त्म होती है तुम्ही पर अब कहीं की बात हो
हो हसीन तुम, महजबीं तुम, नाज़नीं तुम, नाज़ हम
हमसफ़र मेरे हमसफ़र, पंख तुम परवाज़ हम
ज़िंदगी का गीत हो तुम, गीत का अंदाज़ हम
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प्रस्तुत गीत के गायक : सफीर और अल्पना
Audio :
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Video :
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